उत्तर वैदिक धर्म
डॉ. दवराग सोनटक्क
े
सहायक प्राध्यापक
प्राचीन भारतीय इदतहास, संस्क
ृ दत और पुरातत्व दवभाग
काशी दहंिू दवश्वदवघालय, वाराणसी
B.A. Semester III
Paper:301, UNIT: III
Vaidik Religion
उत्तर वैदिक यज्ञ
उत्तर वैदिक धर्म
• ऋग्वैदिक कालीन िेवताओं की इस काल र्ें भी पूजा होती थी.
• अनेक िेवताओं की स्थथदत र्ें पररवतमन आ गया था
• ऋग्वैदिक कालीन प्रर्ुख िेवता जैसे इंद्र व वरुण आदि इस काल
र्ें प्रर्ुख नहींरहे।
• उत्तरवैदिक काल र्ें प्रजापदत को सवोच्च थथान प्राप्त हो गया।
• रुद्र एवं दवष्णु का र्हत्व भी बढ़ गया।
• उत्तर वैदिक काल र्ें अनेक प्रकार क
े यज्ञों का प्रचलन दकया गया
था।
यज्ञ
• वैदिक युग र्ें यज्ञ करना प्रर्ुख कायम था।
• धर्म, िेश, सर्ाज की र्यामिा की रक्षा क
े दनदर्त्त र्हापुरुषों को एकत्र
करना यज्ञ कहलाता है।
• िेवताओं क
े उद्देश से अदि र्ें हदवद्रव्य का जो त्याग दकया जाता है, उसे
यज्ञ कहते है
• िेवता अदि क
े द्वारा र्ानव द्वारा प्रित्त भोजन करते है।
• प्रारस्िक काल र्ें सम्पदत्त, सुरक्षा, दवजय, िीघामयु, संतदत, आदि क
े दलए
यज्ञ दकए जाते थे।
• यज्ञ लोक कल्याणकारी कायम र्ाना गया
• ऐसा दवश्वास था की संसार की कोई सम्पिा नही जो यज्ञ द्वारा प्राप्त न हो
सक
े ।
• ऋग्वेि: यज्ञ से लौदकक तथा पारलौदकक सुख की प्रास्प्त होती है।
• श॰ ब्रा॰: सर्स्त कर्ो र्ें श्रेष्ठ कर्म यज्ञ को कहा है।
यज्ञ की र्हत्ता
• ऋग्वेि: यज्ञ से वेि, छं ि , जौ, चतुष्पि की उत्पदत्त।
• श्रौत सूत्र और गृह्य सूत्र र्ें सूक्ष्म और दवस्तृत वणमन।
• ऋग्वेि (पुरुषसूक्त): दवश्व की उत्पदत्त यज्ञ कर्म से।
• अथवमवेि: संसार की नादभ यज्ञ है।
• यजुवेि: यज्ञ सृदि चक्र का क
ें द्र है।
• शतपथ ब्राह्मण: यज्ञ श्रेष्ठ कर्म।
• ऋग्वेि: जो यज्ञ नही र्ानता वो सुख वंदचत होते हुए , काक, दगद्ध,
क
ु कर योनी प्राप्त
• एतरेय ब्राह्मण: ऐसी कोई सम्पिा नही जो यज्ञ से प्राप्त नही होती।
• यज्ञ : वैदिक धर्म का र्ेरुिंड। (बलिेव उपाध्याय)
यज्ञ का अथम
• स्वाहा: स्व: स्वाथम बुस्द्ध + आ: पूणमतः + हा: त्याग।
• आध्यास्िक: र्ानव हृिय र्ें आिज्योदत (सुप्त ) जागृत करना।
• धादर्मक: िेवताओं को प्रसन्न करने का साधन, श्रद्धा प्रकट करने
का स्त्रोत,
• वैज्ञादनक: प्राक
ृ दतक संतुलन की दवदध , प्रक
ृ दत चक्र : ऋतुचक,
सौरचक्र, चलायर्ान
वैदिक यज्ञ
• ररग्वेदिक काल
• स्वरूप: सरल और साधारण
• कर्मकांड की सरलता
• घर र्ें गृहपदत द्वारा सम्पन्न
• पुरोदहतों की आवश्यकता कर्
• राजा द्वारा दकए यज्ञों का वणमन प्राप्त नही।
• उत्तर वेदिक काल:
• कालांतर र्ें यज्ञों का दवदध-दवधान जदटल हुआ।
यज्ञों का वगीकरण
• गृह्य और श्रौत इन िो वगों र्ें दवभादजत
• यज्ञ अदि से ही सम्पन्न होते थे।
• अदि क
े िो प्रकार ज्ञात है ।
• इनकी संख्या २१ बतायी गयी है।
१) स्मारमतादि (smatargni):
गृह कर्म से सम्बंदधत सार्ान्य यज्ञ (जन्म, दववाह, श्राद्ध)
२) श्रोतादि :
श्रौत यज्ञ (श्रुदत (वेि) अनुसार दवस्तृत यज्ञ)
यज्ञों का वगीकरण
यज्ञ
स्मारमतादि
गृह कर्म से सम्बंदधत
सार्ान्य यज्ञ
(जन्म, दववाह, श्राद्ध)
पाकयज्ञ
गृहथथ
श्रोतादि
श्रौत यज्ञ (श्रुदत (वेि)
अनुसार दवस्तृत यज्ञ)
हवीयमज्ञ
एवं सोर्यज्ञ
१) ग्राहपत्य
२) आहवनीय
३) िदक्षणादि
४) सभ्यादि
1.अ) २५-४० वषम आयु
2.ब) आजीवन अदि
उपासना
वैदिक यज्ञ क
े प्रकार
१) हवीयमज्ञ (श्रोतादि)
1. अदिहोत्र
2. िशमपूणमर्ास
3. चातुर्ामस्य
4. आग्रयण
5. दनरूढ –पशुबंध
6. सौत्रार्णी
7. दपण्ड-दपत्रु यज्ञ
२) सोर्यज्ञ (श्रोतादि)
1. अदििोर्
2. अत्यदिष्ठोर्
3. उक्थ्य
4. षोडशी
5. वाजपेय
6. अदतरात्र
7. आप्तीयार्म
३) पाकयज्ञ (स्मारमतादि)
1. ओपासन होर्
2. वैश्विेव
3. पाणवम
4. अिका
5. र्ादसक
6. श्राद्ध
7. शुलगव
हवीयमज्ञ
अदिहोत्र
िशमपूणमर्ास
चातुर्ामस्य
आग्रयण
1.दनरूढ-
पशुबंध
सौत्रार्णी
1.दपण्ड-दपत्रु
यज्ञ
अदिहोत्र
• अदिहोत्र हवीयमज्ञ र्ें प्रथर् है।
• अदिहोत्र: वह यज्ञ जो यजर्ान और उसकी पत्नी द्वारा चार
पुरोदहतों की सहायता से सम्पादित हो।
• काल: प्रदतदिन:- प्रातः तथा सायंकाल
• अदि की उपासना
• दकथ क
े अनुसार: प्रातः काल और सायंकाल र्ें अदि दक
उपासना दजसर्ें िू ध, तंडुल,िदध,घृत की आहुदत िी जाए।
• प्रास्प्त: पापों से र्ुक्त, स्वगम ले जाने की नाव हेतु
िशम-पूणमर्ास
• ऐसे यज्ञ दजसर्ें पशुबली िी जायें
• िशम : वह दिन जब चंद्र को क
े वल सूयम ही िेख सकता है।
• पूणमर्ास: जब चंद्र पूणम रहता है।
• यह यज्ञ िशम और पूणमर्ास को सम्पादित होते थे।
• आपस्तंभ: इस यज्ञ का सम्पािन जीवनभर, सन्यास होने पूवम तथा
तीस वषों तक या जब तक शरीर जीणम ना हो जाए करते रहना
चादहए।
• अिाधेय यज्ञ करनेवाला पूणमर्ासी को यह यज्ञ कर सकता है।
• कालावदध: १ या २ दिन
• ४ पुरोदहत
• िशम: अदि, इंद्र प्रर्ुख िेवता
• पूणमर्ास: अदि, सोर् प्रर्ुख िेवता
चातुर्ामस्य
• ऋतु सम्बन्धी यज्ञ
• हर चार र्हीने र्ें होने से इसे चातुर्ामस्य नार् पडा।
• इसर्ें चार पवम होते है।
i. वैश्विेव: फाल्गुनी पूदणमर्ा
ii. वरुण -प्रघास: आषाढ़ पूदणमर्ा
iii. साकर्ेध : कादतमकी पूदणमर्ा
iv. शुनासीरीय : फाल्गुन शुक्ल प्रदतपिा
• वसंत, हेर्ंत और वषाम का आगर्न
• शुनासीरीय: क
ृ दष कर्म से संबंदधत
• साकर्ेध: बदल चढ़ाने की प्रथा का उल्लेख, यह बदल दचदटयों क
े
झुंड पे फ
ें क क
े “ रुद्र यह तुम्हारा भाग है”
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
आग्रयण
• आग्रयण: अग्र (प्रथर् फल)+अयन (ग्रहण)
• स्त्रोत: शतपथ ब्राह्मण, आपस्तंब धर्मसूत्र, आश्वलायन गृहसूत्र,
बौधायन गृहसूत्र
• नवीन उत्पन्न धान्य (धान तथा यव) क
े सर्य
• यह यज्ञ सम्पादित दकए दबना नए अन्न का प्रयोग नही कर
सकते।
• काल: पूदणमर्ा या अर्ावस्या क
े दिन
• िेव: इंद्र, अदि तथा आहुदतयााँ
• जैदर्दन क
े अनुसार यह श्रोत यज्ञ का एक रूप है।
पशुबंध या दनरूढ-पशुबंध
• पशुबंध र्हत्वपूणम यज्ञ है।
• स्वतंत्र पशुबंध को दनरूढ-पशुबंध कहा जाता है।
• यह यज्ञ व्यस्क्त जीवनभर करते थे: ६ र्ास उपरांत या साल र्ें एक बार स्वतंत्र
रूप से
• उत्तरायण एवं िदक्षणयार् क
े सर्य
• दकसी भी दिन सम्पन्न होता था, वषामऋतु
• कालावदध: २ दिन
• यज्ञ स्ति (यूप) का दनर्ामण: पलाश, खदिर, दबल्ब या रौदहतक नार्क वृक्ष क
े
काष्ठ से होता था।
• वेिी का दनर्ामण:
1. वेिी पर एक उत्तरवेिी (ऊ
ाँ चवेिी) का दनर्ामण
2. वेिी की पूवम दिशा क
े उत्तरीकोण से लेकर ३२ अंगुल पररणार् का गड्ढा
खोिा जाता था, दजसे चात्वाल कहते थे।
3. यह गड्डा ३६ अंगुल गहरा होता था।
• िेवता: प्रजापदत, सूयम, इंद्र
• संज्ञपन: शस्त्रघात क
े दबना पशु को श्वास रोक क
े र्ारना (अंग-दवशेष को अदि
र्ें हवन)
सौत्रार्यी
• पशुयज्ञ है।
• पशु: अज, र्ेष तथा ऋषभ।
• िेवता: अदश्वन, सरस्वती और इंद्र
दपण्ड-दपत्रु यज्ञ
• दपतरों क
े उद्देश्य से दकया जाने वाला यज्ञ
सोर्यज्ञ
अदििोर्
अत्यदिष्ठोर्
उक्थ्य
षोडशी
1.वाजपेय
अदतरात्र
1.आप्तीयार्म
सोर्यज्ञ
१) एकाह एक दिन
२) अहीन २ से १२ दिन
३) सत्र
१३ से एक वषम, १०००
वषम
सोर्यज्ञ क
े प्रकार
दवस्तृत, िीघमकालीन तथा बहुसाधनव्यादप
सोर्रस की आहुदत िेने से “सोर्यज्ञ” कहलाता है।
अदििोर्
• स्त्रोत: तैतररय संदहता, तैतररय ब्राह्मण, शथपथ ब्राह्मण एवं एतरेय
ब्राह्मण।
• अदििोर् सोर्यज्ञों क
े सात प्रकारों र्ें सवमश्रेष्ठ (आिशम) र्ाना जाता था।
• अदि की स्तुदत की जाने से इसका नार् अदििोर् पडा।
• प्रदतवषम बसंत र्ें अर्ावस्या या पूदणमर्ा को दकया जाता था ।
• इस यज्ञ का दवभाजन तीन भागो र्ें दकया जाता था,
1. यथा (दृदि)
2. पशु
3. सोर्
• कालावदध: ५ दिन
• प्रक
ृ दत यज्ञ होने से इसका दवशेष र्हत्व था ।
• दहलेब्रांड: इसका सम्बन्ध वसंतोत्सव से है।
• इस यज्ञ र्ें १२ शस्त्रों का प्रयोग दकया जाता था।
सोर्यज्ञ
उक्थ
• उक्थ का स्वरूप अदििोर् जैसा है।
• अदििोर् से ३ शस्त्र अदधक
• शस्त्रों की संख्या १५ है।
षोडशी
• यह स्वतंत्र ऋत नही है इसदलए कायम अदििोर् जैसे पृथक
नही होता
• १५ शस्त्र
अदतरात्र
• इसर्ें २९ शस्त्र होते है।
• इसका सम्पािन रात्र र्ें होता है।
• पशुओं की संख्या ४ होती है।
अत्यदिष्ठोर्
• १३ स्त्रोत और शस्त्र होते है।
• अत्यदिष्ठोर् और अदििोर् र्ें कोई दवशेष अंतर नही होता।
अन्य र्हत्वपूणम यज्ञ
•अश्वर्ेध यज्ञ
•पुरुषर्ेध यज्ञ
अश्वर्ेध यज्ञ
• प्राचीन यज्ञ : ऋग्वेि र्ें, तैतररय ब्राह्मण, शथपथ ब्राह्मण र्ें दवस्तृत वणमन
• बहु प्रचदलत यज्ञ
• अश्व की बदल िी जाती थी।
• अश्व का र्ास “उखा” नार्क पात्र र्ें पका क
े आहुदत िी जाती।
• तैतररय ब्राह्मण: अश्वर्ेध को राज्य या रािर कहा है।
• पात्रता: सावमभौर् या अदभदषक्त राजा, दजतने की इच्छा रखने वाले, अतुल
सर्ृस्द्ध पाने की कार्ना करनेवाले
• यदि शत्रु अश्व को पकड ले तो यज्ञ नि हो जाता है।
• फाल्गुन शुक्ल पक्ष क
े ८ वे या ९ वे दिन, आषाढ़ र्ास क
े दिनो र्ें दकया
जाता था।
• रार्ायण र्ें उल्लेख
• सर्ुद्रगुप्त क
े दसक्क
े
• सातवाहन, गुप्त, वाकाटक
पुरुषर्ेध यज्ञ
• सोर्यज्ञों र्ें सवामदधक जदटल यज्ञ
• स्त्रोत: शुल्क यजुवेि, क
ृ ष्ण यजुवेि, वाजनसेयी संदहता, एवं सूत्र
• पुरुषर्ेध : पुरुष की बदल
• चेदत-दनर्ामण: र्ें ५ पशु की बदल
• दवद्वानो र्ें पुरुष बदल पर र्तभेि (प्रतीकािक और वास्तदवक)
• दर्त्र: तैतररय शाखा क
े अनुसार पुरुषर्ेध वास्तदवक था।
• शुल्क यजुवेि: प्राथदर्क अनुिान क
े बाि सभी र्ेध्य र्नुष्ों को
र्ुक्त कर दिया जाता था।
• कालावदध: ५ दिन, श॰ब्रा॰: ४० दिन
• प्रास्प्त: इसक
े सम्पािन से पुरुष की स्थथदत सवमश्रेष्ठ हो जाती है।
• यजर्ान सवम प्रादणयों र्ें श्रेष्ठ और सब क
ु छ प्राप्त करने र्ें सर्थम
• पुरातास्त्वक प्रर्ाण: कौशाम्बी (उत्तर प्रिेश), र्नसर (नागपुर,
र्हारािर )
पाकयज्ञ
ओपासन
होर्
वैश्विेव
पाणवम
अिका
1.र्ादसक
श्राद्ध
1.शुलगव
पाकयज्ञ (स्मारमतादि)
1. ओपासन होर्
2. वैश्विेव
3. पाणवम
4. अिका
5. र्ादसक
6. श्राद्ध
7. शुलगव
यज्ञ स्वरूप:
• साधारण
• सरल
• गृहथथ
• पदत-पत्नी
• दबना पुरोदहत क
े सम्पन्न
• साधारण अदि प्रयोग
शुलगव यज्ञ
• काल: वसंत अथवा हेर्ंत ऋतु र्ें शुक्ल पक्ष र्ें
• थथान: नगर से बाहर, वन्य क्षेत्र
• यजर्ान क
े आवास से उत्तर-पूवम दिशा र्ें
• गाय की दवदधवत बदल रुद्र क
े िी जाती।
• वध्य पशु क
े रुदधर आठ पात्रों र्ें भरक
े , आठ दिशाओं र्ें
दछडका जाता
• इस वक्त “शतरुदद्रय” र्ंत्र का पाठ दकया जाता
• तिनंतर, वध्य पशु की खाल उतारी जाती, और हृिय एवं भीतरी
अंग को रुद्र पे चढ़ाया जाता
• सिभम: र्ानव गृह्यसूत्र, बौधायन गृह्यसूत्र, आश्वलायन गृह्यसूत्र
उपसंहार
• वेदिक काल र्ें यज्ञ प्रर्ुख धर्म कायम
• यज्ञ: द्रव्य, िेवता एवं त्याग
• प्रारि र्ें यज्ञ लोक कल्याणकारी भावना से पररपूणम
• संसार की सवम सम्पिा यज्ञ से प्रास्प्त की धारणा
• पारलौदकक र्ोक्ष की प्रास्प्त
• वेदिक कालीन सम्पूणम जीवन यज्ञर्य
• र्ूदतम, र्ंदिर का अभाव
• प्रारि र्ें सरल यज्ञ कायम उत्तर वेदिक काल र्ें जदटल बन गए
• यज्ञ दवदध, सर्य, द्रव्य, िदक्षणा अत्यदधक जदटल
• यज्ञ सार्ान्य क
े दलए िुरूह और व्यवसाध्य हो गए
• उत्तरवैदिक काल र्ें धर्म र्ें आडंबरों एवं अंधदवश्वासों ने भी प्रवेश कर
दलया था।
• यज्ञ परम्परा से भदवष् र्ें पूजा का रूप ग्रहण दकया
सर्ाप्त

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  • 1. उत्तर वैदिक धर्म डॉ. दवराग सोनटक्क े सहायक प्राध्यापक प्राचीन भारतीय इदतहास, संस्क ृ दत और पुरातत्व दवभाग काशी दहंिू दवश्वदवघालय, वाराणसी B.A. Semester III Paper:301, UNIT: III Vaidik Religion
  • 3. उत्तर वैदिक धर्म • ऋग्वैदिक कालीन िेवताओं की इस काल र्ें भी पूजा होती थी. • अनेक िेवताओं की स्थथदत र्ें पररवतमन आ गया था • ऋग्वैदिक कालीन प्रर्ुख िेवता जैसे इंद्र व वरुण आदि इस काल र्ें प्रर्ुख नहींरहे। • उत्तरवैदिक काल र्ें प्रजापदत को सवोच्च थथान प्राप्त हो गया। • रुद्र एवं दवष्णु का र्हत्व भी बढ़ गया। • उत्तर वैदिक काल र्ें अनेक प्रकार क े यज्ञों का प्रचलन दकया गया था।
  • 4. यज्ञ • वैदिक युग र्ें यज्ञ करना प्रर्ुख कायम था। • धर्म, िेश, सर्ाज की र्यामिा की रक्षा क े दनदर्त्त र्हापुरुषों को एकत्र करना यज्ञ कहलाता है। • िेवताओं क े उद्देश से अदि र्ें हदवद्रव्य का जो त्याग दकया जाता है, उसे यज्ञ कहते है • िेवता अदि क े द्वारा र्ानव द्वारा प्रित्त भोजन करते है। • प्रारस्िक काल र्ें सम्पदत्त, सुरक्षा, दवजय, िीघामयु, संतदत, आदि क े दलए यज्ञ दकए जाते थे। • यज्ञ लोक कल्याणकारी कायम र्ाना गया • ऐसा दवश्वास था की संसार की कोई सम्पिा नही जो यज्ञ द्वारा प्राप्त न हो सक े । • ऋग्वेि: यज्ञ से लौदकक तथा पारलौदकक सुख की प्रास्प्त होती है। • श॰ ब्रा॰: सर्स्त कर्ो र्ें श्रेष्ठ कर्म यज्ञ को कहा है।
  • 5. यज्ञ की र्हत्ता • ऋग्वेि: यज्ञ से वेि, छं ि , जौ, चतुष्पि की उत्पदत्त। • श्रौत सूत्र और गृह्य सूत्र र्ें सूक्ष्म और दवस्तृत वणमन। • ऋग्वेि (पुरुषसूक्त): दवश्व की उत्पदत्त यज्ञ कर्म से। • अथवमवेि: संसार की नादभ यज्ञ है। • यजुवेि: यज्ञ सृदि चक्र का क ें द्र है। • शतपथ ब्राह्मण: यज्ञ श्रेष्ठ कर्म। • ऋग्वेि: जो यज्ञ नही र्ानता वो सुख वंदचत होते हुए , काक, दगद्ध, क ु कर योनी प्राप्त • एतरेय ब्राह्मण: ऐसी कोई सम्पिा नही जो यज्ञ से प्राप्त नही होती। • यज्ञ : वैदिक धर्म का र्ेरुिंड। (बलिेव उपाध्याय)
  • 6. यज्ञ का अथम • स्वाहा: स्व: स्वाथम बुस्द्ध + आ: पूणमतः + हा: त्याग। • आध्यास्िक: र्ानव हृिय र्ें आिज्योदत (सुप्त ) जागृत करना। • धादर्मक: िेवताओं को प्रसन्न करने का साधन, श्रद्धा प्रकट करने का स्त्रोत, • वैज्ञादनक: प्राक ृ दतक संतुलन की दवदध , प्रक ृ दत चक्र : ऋतुचक, सौरचक्र, चलायर्ान
  • 7. वैदिक यज्ञ • ररग्वेदिक काल • स्वरूप: सरल और साधारण • कर्मकांड की सरलता • घर र्ें गृहपदत द्वारा सम्पन्न • पुरोदहतों की आवश्यकता कर् • राजा द्वारा दकए यज्ञों का वणमन प्राप्त नही। • उत्तर वेदिक काल: • कालांतर र्ें यज्ञों का दवदध-दवधान जदटल हुआ।
  • 8. यज्ञों का वगीकरण • गृह्य और श्रौत इन िो वगों र्ें दवभादजत • यज्ञ अदि से ही सम्पन्न होते थे। • अदि क े िो प्रकार ज्ञात है । • इनकी संख्या २१ बतायी गयी है। १) स्मारमतादि (smatargni): गृह कर्म से सम्बंदधत सार्ान्य यज्ञ (जन्म, दववाह, श्राद्ध) २) श्रोतादि : श्रौत यज्ञ (श्रुदत (वेि) अनुसार दवस्तृत यज्ञ)
  • 9. यज्ञों का वगीकरण यज्ञ स्मारमतादि गृह कर्म से सम्बंदधत सार्ान्य यज्ञ (जन्म, दववाह, श्राद्ध) पाकयज्ञ गृहथथ श्रोतादि श्रौत यज्ञ (श्रुदत (वेि) अनुसार दवस्तृत यज्ञ) हवीयमज्ञ एवं सोर्यज्ञ १) ग्राहपत्य २) आहवनीय ३) िदक्षणादि ४) सभ्यादि 1.अ) २५-४० वषम आयु 2.ब) आजीवन अदि उपासना
  • 10. वैदिक यज्ञ क े प्रकार १) हवीयमज्ञ (श्रोतादि) 1. अदिहोत्र 2. िशमपूणमर्ास 3. चातुर्ामस्य 4. आग्रयण 5. दनरूढ –पशुबंध 6. सौत्रार्णी 7. दपण्ड-दपत्रु यज्ञ २) सोर्यज्ञ (श्रोतादि) 1. अदििोर् 2. अत्यदिष्ठोर् 3. उक्थ्य 4. षोडशी 5. वाजपेय 6. अदतरात्र 7. आप्तीयार्म ३) पाकयज्ञ (स्मारमतादि) 1. ओपासन होर् 2. वैश्विेव 3. पाणवम 4. अिका 5. र्ादसक 6. श्राद्ध 7. शुलगव
  • 12. अदिहोत्र • अदिहोत्र हवीयमज्ञ र्ें प्रथर् है। • अदिहोत्र: वह यज्ञ जो यजर्ान और उसकी पत्नी द्वारा चार पुरोदहतों की सहायता से सम्पादित हो। • काल: प्रदतदिन:- प्रातः तथा सायंकाल • अदि की उपासना • दकथ क े अनुसार: प्रातः काल और सायंकाल र्ें अदि दक उपासना दजसर्ें िू ध, तंडुल,िदध,घृत की आहुदत िी जाए। • प्रास्प्त: पापों से र्ुक्त, स्वगम ले जाने की नाव हेतु
  • 13. िशम-पूणमर्ास • ऐसे यज्ञ दजसर्ें पशुबली िी जायें • िशम : वह दिन जब चंद्र को क े वल सूयम ही िेख सकता है। • पूणमर्ास: जब चंद्र पूणम रहता है। • यह यज्ञ िशम और पूणमर्ास को सम्पादित होते थे। • आपस्तंभ: इस यज्ञ का सम्पािन जीवनभर, सन्यास होने पूवम तथा तीस वषों तक या जब तक शरीर जीणम ना हो जाए करते रहना चादहए। • अिाधेय यज्ञ करनेवाला पूणमर्ासी को यह यज्ञ कर सकता है। • कालावदध: १ या २ दिन • ४ पुरोदहत • िशम: अदि, इंद्र प्रर्ुख िेवता • पूणमर्ास: अदि, सोर् प्रर्ुख िेवता
  • 14. चातुर्ामस्य • ऋतु सम्बन्धी यज्ञ • हर चार र्हीने र्ें होने से इसे चातुर्ामस्य नार् पडा। • इसर्ें चार पवम होते है। i. वैश्विेव: फाल्गुनी पूदणमर्ा ii. वरुण -प्रघास: आषाढ़ पूदणमर्ा iii. साकर्ेध : कादतमकी पूदणमर्ा iv. शुनासीरीय : फाल्गुन शुक्ल प्रदतपिा • वसंत, हेर्ंत और वषाम का आगर्न • शुनासीरीय: क ृ दष कर्म से संबंदधत • साकर्ेध: बदल चढ़ाने की प्रथा का उल्लेख, यह बदल दचदटयों क े झुंड पे फ ें क क े “ रुद्र यह तुम्हारा भाग है”
  • 16. आग्रयण • आग्रयण: अग्र (प्रथर् फल)+अयन (ग्रहण) • स्त्रोत: शतपथ ब्राह्मण, आपस्तंब धर्मसूत्र, आश्वलायन गृहसूत्र, बौधायन गृहसूत्र • नवीन उत्पन्न धान्य (धान तथा यव) क े सर्य • यह यज्ञ सम्पादित दकए दबना नए अन्न का प्रयोग नही कर सकते। • काल: पूदणमर्ा या अर्ावस्या क े दिन • िेव: इंद्र, अदि तथा आहुदतयााँ • जैदर्दन क े अनुसार यह श्रोत यज्ञ का एक रूप है।
  • 17. पशुबंध या दनरूढ-पशुबंध • पशुबंध र्हत्वपूणम यज्ञ है। • स्वतंत्र पशुबंध को दनरूढ-पशुबंध कहा जाता है। • यह यज्ञ व्यस्क्त जीवनभर करते थे: ६ र्ास उपरांत या साल र्ें एक बार स्वतंत्र रूप से • उत्तरायण एवं िदक्षणयार् क े सर्य • दकसी भी दिन सम्पन्न होता था, वषामऋतु • कालावदध: २ दिन • यज्ञ स्ति (यूप) का दनर्ामण: पलाश, खदिर, दबल्ब या रौदहतक नार्क वृक्ष क े काष्ठ से होता था। • वेिी का दनर्ामण: 1. वेिी पर एक उत्तरवेिी (ऊ ाँ चवेिी) का दनर्ामण 2. वेिी की पूवम दिशा क े उत्तरीकोण से लेकर ३२ अंगुल पररणार् का गड्ढा खोिा जाता था, दजसे चात्वाल कहते थे। 3. यह गड्डा ३६ अंगुल गहरा होता था। • िेवता: प्रजापदत, सूयम, इंद्र • संज्ञपन: शस्त्रघात क े दबना पशु को श्वास रोक क े र्ारना (अंग-दवशेष को अदि र्ें हवन)
  • 18. सौत्रार्यी • पशुयज्ञ है। • पशु: अज, र्ेष तथा ऋषभ। • िेवता: अदश्वन, सरस्वती और इंद्र
  • 19. दपण्ड-दपत्रु यज्ञ • दपतरों क े उद्देश्य से दकया जाने वाला यज्ञ
  • 21. सोर्यज्ञ १) एकाह एक दिन २) अहीन २ से १२ दिन ३) सत्र १३ से एक वषम, १००० वषम सोर्यज्ञ क े प्रकार दवस्तृत, िीघमकालीन तथा बहुसाधनव्यादप सोर्रस की आहुदत िेने से “सोर्यज्ञ” कहलाता है।
  • 22. अदििोर् • स्त्रोत: तैतररय संदहता, तैतररय ब्राह्मण, शथपथ ब्राह्मण एवं एतरेय ब्राह्मण। • अदििोर् सोर्यज्ञों क े सात प्रकारों र्ें सवमश्रेष्ठ (आिशम) र्ाना जाता था। • अदि की स्तुदत की जाने से इसका नार् अदििोर् पडा। • प्रदतवषम बसंत र्ें अर्ावस्या या पूदणमर्ा को दकया जाता था । • इस यज्ञ का दवभाजन तीन भागो र्ें दकया जाता था, 1. यथा (दृदि) 2. पशु 3. सोर् • कालावदध: ५ दिन • प्रक ृ दत यज्ञ होने से इसका दवशेष र्हत्व था । • दहलेब्रांड: इसका सम्बन्ध वसंतोत्सव से है। • इस यज्ञ र्ें १२ शस्त्रों का प्रयोग दकया जाता था। सोर्यज्ञ
  • 23. उक्थ • उक्थ का स्वरूप अदििोर् जैसा है। • अदििोर् से ३ शस्त्र अदधक • शस्त्रों की संख्या १५ है।
  • 24. षोडशी • यह स्वतंत्र ऋत नही है इसदलए कायम अदििोर् जैसे पृथक नही होता • १५ शस्त्र
  • 25. अदतरात्र • इसर्ें २९ शस्त्र होते है। • इसका सम्पािन रात्र र्ें होता है। • पशुओं की संख्या ४ होती है।
  • 26. अत्यदिष्ठोर् • १३ स्त्रोत और शस्त्र होते है। • अत्यदिष्ठोर् और अदििोर् र्ें कोई दवशेष अंतर नही होता।
  • 27. अन्य र्हत्वपूणम यज्ञ •अश्वर्ेध यज्ञ •पुरुषर्ेध यज्ञ
  • 28. अश्वर्ेध यज्ञ • प्राचीन यज्ञ : ऋग्वेि र्ें, तैतररय ब्राह्मण, शथपथ ब्राह्मण र्ें दवस्तृत वणमन • बहु प्रचदलत यज्ञ • अश्व की बदल िी जाती थी। • अश्व का र्ास “उखा” नार्क पात्र र्ें पका क े आहुदत िी जाती। • तैतररय ब्राह्मण: अश्वर्ेध को राज्य या रािर कहा है। • पात्रता: सावमभौर् या अदभदषक्त राजा, दजतने की इच्छा रखने वाले, अतुल सर्ृस्द्ध पाने की कार्ना करनेवाले • यदि शत्रु अश्व को पकड ले तो यज्ञ नि हो जाता है। • फाल्गुन शुक्ल पक्ष क े ८ वे या ९ वे दिन, आषाढ़ र्ास क े दिनो र्ें दकया जाता था। • रार्ायण र्ें उल्लेख • सर्ुद्रगुप्त क े दसक्क े • सातवाहन, गुप्त, वाकाटक
  • 29. पुरुषर्ेध यज्ञ • सोर्यज्ञों र्ें सवामदधक जदटल यज्ञ • स्त्रोत: शुल्क यजुवेि, क ृ ष्ण यजुवेि, वाजनसेयी संदहता, एवं सूत्र • पुरुषर्ेध : पुरुष की बदल • चेदत-दनर्ामण: र्ें ५ पशु की बदल • दवद्वानो र्ें पुरुष बदल पर र्तभेि (प्रतीकािक और वास्तदवक) • दर्त्र: तैतररय शाखा क े अनुसार पुरुषर्ेध वास्तदवक था। • शुल्क यजुवेि: प्राथदर्क अनुिान क े बाि सभी र्ेध्य र्नुष्ों को र्ुक्त कर दिया जाता था। • कालावदध: ५ दिन, श॰ब्रा॰: ४० दिन • प्रास्प्त: इसक े सम्पािन से पुरुष की स्थथदत सवमश्रेष्ठ हो जाती है। • यजर्ान सवम प्रादणयों र्ें श्रेष्ठ और सब क ु छ प्राप्त करने र्ें सर्थम • पुरातास्त्वक प्रर्ाण: कौशाम्बी (उत्तर प्रिेश), र्नसर (नागपुर, र्हारािर )
  • 31. पाकयज्ञ (स्मारमतादि) 1. ओपासन होर् 2. वैश्विेव 3. पाणवम 4. अिका 5. र्ादसक 6. श्राद्ध 7. शुलगव यज्ञ स्वरूप: • साधारण • सरल • गृहथथ • पदत-पत्नी • दबना पुरोदहत क े सम्पन्न • साधारण अदि प्रयोग
  • 32. शुलगव यज्ञ • काल: वसंत अथवा हेर्ंत ऋतु र्ें शुक्ल पक्ष र्ें • थथान: नगर से बाहर, वन्य क्षेत्र • यजर्ान क े आवास से उत्तर-पूवम दिशा र्ें • गाय की दवदधवत बदल रुद्र क े िी जाती। • वध्य पशु क े रुदधर आठ पात्रों र्ें भरक े , आठ दिशाओं र्ें दछडका जाता • इस वक्त “शतरुदद्रय” र्ंत्र का पाठ दकया जाता • तिनंतर, वध्य पशु की खाल उतारी जाती, और हृिय एवं भीतरी अंग को रुद्र पे चढ़ाया जाता • सिभम: र्ानव गृह्यसूत्र, बौधायन गृह्यसूत्र, आश्वलायन गृह्यसूत्र
  • 33. उपसंहार • वेदिक काल र्ें यज्ञ प्रर्ुख धर्म कायम • यज्ञ: द्रव्य, िेवता एवं त्याग • प्रारि र्ें यज्ञ लोक कल्याणकारी भावना से पररपूणम • संसार की सवम सम्पिा यज्ञ से प्रास्प्त की धारणा • पारलौदकक र्ोक्ष की प्रास्प्त • वेदिक कालीन सम्पूणम जीवन यज्ञर्य • र्ूदतम, र्ंदिर का अभाव • प्रारि र्ें सरल यज्ञ कायम उत्तर वेदिक काल र्ें जदटल बन गए • यज्ञ दवदध, सर्य, द्रव्य, िदक्षणा अत्यदधक जदटल • यज्ञ सार्ान्य क े दलए िुरूह और व्यवसाध्य हो गए • उत्तरवैदिक काल र्ें धर्म र्ें आडंबरों एवं अंधदवश्वासों ने भी प्रवेश कर दलया था। • यज्ञ परम्परा से भदवष् र्ें पूजा का रूप ग्रहण दकया