संधि: शब्दों को जोड़ने की कला
हिंदी और संस्कृत व्याकरण में संधि एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो
शब्दों के निर्माण और उनके सौंदर्य को बढ़ाती है। आइए इस प्राचीन
भाषाई नियम को समझें
Presented by
Mr. Rum lal Bhuarya
Asst. Professor (hindi)
संधि का परिचय
संधि संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'मेल' या 'जोड़'। दो
निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है, वह
संधि कहलाता है।
हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा शब्दों को लिखने की परम्परा कम
है, लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम नहीं चलता। भाषा को
अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण में संधि को भी पढ़ना अत्यंत
आवश्यक है।
संधि विच्छेद: संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की
तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।
संधि की परिभाषाएं
परिभाषा 1
पास-पास स्थित पदों के समीप विद्यमान
वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि
कहते हैं।
परिभाषा 2
जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की
अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली
ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन
लाती हैं, उसे संधि कहते हैं।
परिभाषा 3
जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा
शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है,
उसे संधि कहते हैं।
उदाहरण: सम् + तोष = संतोष, देव + इंद्र = देवेंद्र, भानु + उदय = भानूदय
संधि के प्रमुख भेद
1. स्वर संधि
जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है, तब
जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते
हैं।
2. व्यंजन संधि
जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ
मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे
व्यंजन संधि कहते हैं।
3. विसर्ग संधि
विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये
तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि
कहते हैं।
स्वर संधि के प्रकार
हिन्दी में स्वर संधि के पाँच प्रकार के भेद होते हैं:
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण संधि
5. अयादि संधि
स्वर संधि तब होती है जब स्वर का स्वर से मेल होता है। हिंदी में स्वरों
की संख्या ग्यारह होती है।
दीर्घ संधि
यदि दो सजातीय स्वर आस-पास आये, तो दोनों के मेल से सजातीय दीर्घ स्वर हो जाता है, जिसे दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं।
अ + अ = आ
अधिक + अंश = अधिकांश
देव + अर्चन = देवार्चन
इ + इ = ई
अति + इव = अतीव
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
उ + उ = ऊ
सु + उक्ति = सूक्ति
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
दीर्घ संधि के उदाहरण
अ + आ = आ
• कुश + आसन = कुशासन
• देव + आलय = देवालय
• प्राण + आयाम = प्राणायाम
• हिम + आलय = हिमालय
आ + अ = आ
• कदा + अपि = कदापि
• दीक्षा + अंत = दीक्षांत
• यथा + अर्थ = यथार्थ
आ + आ = आ
• महा + आत्मा = महात्मा
• विद्या + आलय = विद्यालय
• वार्ता + आलाप = वार्तालाप
गुण संधि
गुण संधि में स्वरों का मेल निम्न नियमों के अनुसार होता है:
• जब (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो 'ए' बनता है
• जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो 'ओ' बनता है
• जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो 'अर' बनता है
अ + इ = ए
देव + इंद्र = देवेंद्र
नर + इंद्र = नरेंद्र
अ + उ = ओ
सूर्य + उदय = सूर्योदय
परम + उपकार = परमोपकार
अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
वृद्धि संधि
वृद्धि संधि के नियम:
• जब (अ, आ) के साथ (ए, ऐ) हो तो 'ऐ' बनता है
• जब (अ, आ) के साथ (ओ, औ) हो तो 'औ' बनता है
अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक
लोक + एषणा = लोकैषणा
अ + ऐ = ऐ
नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य
मत + ऐक्य = मतैक्य
अ + ओ = औ
जल + ओघ = जलौघ
परम + ओज = परमौज
अ + औ = औ
देव + औदार्य = देवौदार्य
परम + औषध = परमौषध
यण संधि
यण संधि के नियम:
• जब (इ, ई) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो 'य्' बन जाता है
• जब (उ, ऊ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो 'व्' बन जाता है
• जब (ऋ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो 'र' बन जाता है
यण संधि के उदाहरण
इ/ई + अन्य स्वर = य्
• अति + अधिक = अत्यधिक
• अति + आचार = अत्याचार
• प्रति + एक = प्रत्येक
उ/ऊ + अन्य स्वर = व्
• अनु + अय = अन्वय
• सु + अच्छ = स्वच्छ
• अनु + एषण = अन्वेषण
ऋ + अन्य स्वर = र्
• पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
• मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
• पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
अयादि संधि
जब (ए, ऐ, ओ, औ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो विशेष परिवर्तन होता है जिसे अयादि संधि कहते हैं।
• ए + अन्य स्वर = अय् + स्वर
• ऐ + अन्य स्वर = आय् + स्वर
• ओ + अन्य स्वर = अव् + स्वर
• औ + अन्य स्वर = आव् + स्वर
ए + अ = अय
शे + अन = शयन
ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय
गै + अक = गायक
नै + अक = नायक
ओ + अ = अव्
भो + अन = भवन
पो + अन = पवन
औ + अ = आव्
पौ + अक = पावक
नौ + इक = नाविक
व्यंजन संधि
जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के उदाहरण:
• जगत्+नाथ = जगन्नाथ (त्+न = न्न)
• सत्+जन = सज्जन (त्+ज = ज्ज)
• उत्+हार = उद्धार (त्+ह = द्ध)
• सत्+धर्म = सद्धर्म (त्+ध = द्ध)
व्यंजन संधि के प्रमुख नियम
वर्गों के पहले वर्ण का परिवर्तन
किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का
मेल तीसरे, चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह् या
किसी स्वर से हो तो क् को ग्, च् को ज्, ट्
को ड्, त् को द् और प् को ब् हो जाता है।
उदाहरण: दिक् + गज = दिग्गज
न् या म् के साथ मेल
यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण का मेल न् या
म् से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का
पाँचवाँ वर्ण हो जाता है।
उदाहरण: वाक् + मय = वाङ्मय
त् का विशेष परिवर्तन
त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या
किसी स्वर से हो तो द् हो जाता है।
उदाहरण: जगत् + ईश = जगदीश
व्यंजन संधि के अन्य नियम
1 त् और श् का मेल
त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है।
उदाहरण: उत् + श्वास = उच्छ्वास
2 त् और ह् का मेल
त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है।
उदाहरण: उत् + हार = उद्धार
3 छ् से पहले च्
स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है।
उदाहरण: आ + छादन = आच्छादन
4 म् का अनुस्वार
यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।
उदाहरण: सम् + कल्प = संकल्प
विसर्ग संधि
विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के उदाहरण:
• मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
• नि: + अक्षर = निरक्षर
• नि: + पाप = निष्पाप
विसर्ग संधि के नियम
विसर्ग का 'ओ' होना
विसर्ग के पहले यदि 'अ' और बाद में भी 'अ'
अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण,
अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का 'ओ' हो
जाता है।
उदाहरण: मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
विसर्ग का 'र' होना
विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई
स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के
तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल,
व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का 'र' या 'र्'
हो जाता है।
उदाहरण: निः + आहार = निराहार
विसर्ग का 'श' होना
विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में
च, छ या श हो तो विसर्ग का 'श' हो जाता
है।
उदाहरण: निः + चल = निश्चल
विसर्ग संधि के अन्य नियम
विसर्ग का 'स्' होना
विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग 'स्' बन जाता है।
उदाहरण: नमः + ते = नमस्ते
विसर्ग का 'ष' होना
विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का 'ष' हो जाता है।
उदाहरण: निः + कलंक = निष्कलंक
विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं
विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उदाहरण: अंतः + करण = अंतःकरण
संधि का महत्व
संधि भाषा को सुंदर और सुगम बनाती है। यह न केवल उच्चारण को सरल
बनाती है बल्कि शब्दों को अधिक अर्थपूर्ण भी बनाती है।
हिंदी और संस्कृत साहित्य में संधि का विशेष महत्व है। कविताओं और
श्लोकों में संधि का प्रयोग भाषा के सौंदर्य को बढ़ाता है।
संधि के माध्यम से शब्दों का संगीतमय प्रवाह संभव होता है जो भाषा को
अधिक आकर्षक बनाता है।
संधि: भाषा का अनमोल खजाना
संधि व्याकरण का वह अनमोल खजाना है जो हमारी भाषा को समृद्ध बनाता है। संस्कृत से लेकर हिंदी तक, यह व्याकरणिक नियम भाषा के सौंदर्य को
बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संधि के नियमों को समझकर हम न केवल भाषा का बेहतर प्रयोग कर सकते हैं बल्कि प्राचीन ग्रंथों और साहित्य को भी सही तरीके से समझ सकते हैं।
इसलिए हिंदी और संस्कृत सीखने वालों के लिए संधि का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है।
शब्द + शब्द = संधि

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संधि, संधि के प्रकार, स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि उदाहरण सहित .pptx

  • 1. संधि: शब्दों को जोड़ने की कला हिंदी और संस्कृत व्याकरण में संधि एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो शब्दों के निर्माण और उनके सौंदर्य को बढ़ाती है। आइए इस प्राचीन भाषाई नियम को समझें Presented by Mr. Rum lal Bhuarya Asst. Professor (hindi)
  • 2. संधि का परिचय संधि संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'मेल' या 'जोड़'। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है, वह संधि कहलाता है। हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा शब्दों को लिखने की परम्परा कम है, लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम नहीं चलता। भाषा को अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण में संधि को भी पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। संधि विच्छेद: संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।
  • 3. संधि की परिभाषाएं परिभाषा 1 पास-पास स्थित पदों के समीप विद्यमान वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। परिभाषा 2 जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं, उसे संधि कहते हैं। परिभाषा 3 जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं। उदाहरण: सम् + तोष = संतोष, देव + इंद्र = देवेंद्र, भानु + उदय = भानूदय
  • 4. संधि के प्रमुख भेद 1. स्वर संधि जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है, तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। 2. व्यंजन संधि जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। 3. विसर्ग संधि विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
  • 5. स्वर संधि के प्रकार हिन्दी में स्वर संधि के पाँच प्रकार के भेद होते हैं: 1. दीर्घ संधि 2. गुण संधि 3. वृद्धि संधि 4. यण संधि 5. अयादि संधि स्वर संधि तब होती है जब स्वर का स्वर से मेल होता है। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है।
  • 6. दीर्घ संधि यदि दो सजातीय स्वर आस-पास आये, तो दोनों के मेल से सजातीय दीर्घ स्वर हो जाता है, जिसे दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं। अ + अ = आ अधिक + अंश = अधिकांश देव + अर्चन = देवार्चन इ + इ = ई अति + इव = अतीव मुनि + इंद्र = मुनींद्र उ + उ = ऊ सु + उक्ति = सूक्ति गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
  • 7. दीर्घ संधि के उदाहरण अ + आ = आ • कुश + आसन = कुशासन • देव + आलय = देवालय • प्राण + आयाम = प्राणायाम • हिम + आलय = हिमालय आ + अ = आ • कदा + अपि = कदापि • दीक्षा + अंत = दीक्षांत • यथा + अर्थ = यथार्थ आ + आ = आ • महा + आत्मा = महात्मा • विद्या + आलय = विद्यालय • वार्ता + आलाप = वार्तालाप
  • 8. गुण संधि गुण संधि में स्वरों का मेल निम्न नियमों के अनुसार होता है: • जब (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो 'ए' बनता है • जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो 'ओ' बनता है • जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो 'अर' बनता है अ + इ = ए देव + इंद्र = देवेंद्र नर + इंद्र = नरेंद्र अ + उ = ओ सूर्य + उदय = सूर्योदय परम + उपकार = परमोपकार अ + ऋ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
  • 9. वृद्धि संधि वृद्धि संधि के नियम: • जब (अ, आ) के साथ (ए, ऐ) हो तो 'ऐ' बनता है • जब (अ, आ) के साथ (ओ, औ) हो तो 'औ' बनता है अ + ए = ऐ एक + एक = एकैक लोक + एषणा = लोकैषणा अ + ऐ = ऐ नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य मत + ऐक्य = मतैक्य अ + ओ = औ जल + ओघ = जलौघ परम + ओज = परमौज अ + औ = औ देव + औदार्य = देवौदार्य परम + औषध = परमौषध
  • 10. यण संधि यण संधि के नियम: • जब (इ, ई) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो 'य्' बन जाता है • जब (उ, ऊ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो 'व्' बन जाता है • जब (ऋ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो 'र' बन जाता है
  • 11. यण संधि के उदाहरण इ/ई + अन्य स्वर = य् • अति + अधिक = अत्यधिक • अति + आचार = अत्याचार • प्रति + एक = प्रत्येक उ/ऊ + अन्य स्वर = व् • अनु + अय = अन्वय • सु + अच्छ = स्वच्छ • अनु + एषण = अन्वेषण ऋ + अन्य स्वर = र् • पितृ + अनुमति = पित्रनुमति • मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा • पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
  • 12. अयादि संधि जब (ए, ऐ, ओ, औ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो विशेष परिवर्तन होता है जिसे अयादि संधि कहते हैं। • ए + अन्य स्वर = अय् + स्वर • ऐ + अन्य स्वर = आय् + स्वर • ओ + अन्य स्वर = अव् + स्वर • औ + अन्य स्वर = आव् + स्वर ए + अ = अय शे + अन = शयन ने + अन = नयन ऐ + अ = आय गै + अक = गायक नै + अक = नायक ओ + अ = अव् भो + अन = भवन पो + अन = पवन औ + अ = आव् पौ + अक = पावक नौ + इक = नाविक
  • 13. व्यंजन संधि जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन संधि के उदाहरण: • जगत्+नाथ = जगन्नाथ (त्+न = न्न) • सत्+जन = सज्जन (त्+ज = ज्ज) • उत्+हार = उद्धार (त्+ह = द्ध) • सत्+धर्म = सद्धर्म (त्+ध = द्ध)
  • 14. व्यंजन संधि के प्रमुख नियम वर्गों के पहले वर्ण का परिवर्तन किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल तीसरे, चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह् या किसी स्वर से हो तो क् को ग्, च् को ज्, ट् को ड्, त् को द् और प् को ब् हो जाता है। उदाहरण: दिक् + गज = दिग्गज न् या म् के साथ मेल यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण का मेल न् या म् से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। उदाहरण: वाक् + मय = वाङ्मय त् का विशेष परिवर्तन त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो तो द् हो जाता है। उदाहरण: जगत् + ईश = जगदीश
  • 15. व्यंजन संधि के अन्य नियम 1 त् और श् का मेल त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है। उदाहरण: उत् + श्वास = उच्छ्वास 2 त् और ह् का मेल त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। उदाहरण: उत् + हार = उद्धार 3 छ् से पहले च् स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। उदाहरण: आ + छादन = आच्छादन 4 म् का अनुस्वार यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। उदाहरण: सम् + कल्प = संकल्प
  • 16. विसर्ग संधि विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। विसर्ग संधि के उदाहरण: • मन: + अनुकूल = मनोनुकूल • नि: + अक्षर = निरक्षर • नि: + पाप = निष्पाप
  • 17. विसर्ग संधि के नियम विसर्ग का 'ओ' होना विसर्ग के पहले यदि 'अ' और बाद में भी 'अ' अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का 'ओ' हो जाता है। उदाहरण: मनः + अनुकूल = मनोनुकूल विसर्ग का 'र' होना विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का 'र' या 'र्' हो जाता है। उदाहरण: निः + आहार = निराहार विसर्ग का 'श' होना विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का 'श' हो जाता है। उदाहरण: निः + चल = निश्चल
  • 18. विसर्ग संधि के अन्य नियम विसर्ग का 'स्' होना विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग 'स्' बन जाता है। उदाहरण: नमः + ते = नमस्ते विसर्ग का 'ष' होना विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का 'ष' हो जाता है। उदाहरण: निः + कलंक = निष्कलंक विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। उदाहरण: अंतः + करण = अंतःकरण
  • 19. संधि का महत्व संधि भाषा को सुंदर और सुगम बनाती है। यह न केवल उच्चारण को सरल बनाती है बल्कि शब्दों को अधिक अर्थपूर्ण भी बनाती है। हिंदी और संस्कृत साहित्य में संधि का विशेष महत्व है। कविताओं और श्लोकों में संधि का प्रयोग भाषा के सौंदर्य को बढ़ाता है। संधि के माध्यम से शब्दों का संगीतमय प्रवाह संभव होता है जो भाषा को अधिक आकर्षक बनाता है।
  • 20. संधि: भाषा का अनमोल खजाना संधि व्याकरण का वह अनमोल खजाना है जो हमारी भाषा को समृद्ध बनाता है। संस्कृत से लेकर हिंदी तक, यह व्याकरणिक नियम भाषा के सौंदर्य को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संधि के नियमों को समझकर हम न केवल भाषा का बेहतर प्रयोग कर सकते हैं बल्कि प्राचीन ग्रंथों और साहित्य को भी सही तरीके से समझ सकते हैं। इसलिए हिंदी और संस्कृत सीखने वालों के लिए संधि का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। शब्द + शब्द = संधि