रेडियो: ‘जलवायु कार्रवाई में भी एक सुलभ व सक्षम साधन'
जलवायु परिवर्तन ग्रामीण समुदायों के जीवन में बाधाएँ उत्पन्न कर रहा है और इससे कृषि, जल एवं दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है. लेकिन आज भी बहुत से लोग इस संकट के बारे में व उससे निपटने के कारगर तरीक़ों के बारे में जानकार नहीं हैं. हर वर्ष 13 फ़रवरी को मनाए जाए वाले विश्व रेडियो दिवस के लिए, वर्ष 2025 की थीम भी यही है – ‘रेडियो और जलवायु परिवर्तन’ यानि रेडियो के ज़रिए जलवायु अनुकूलन, शमन और भविष्य की तैयारियों को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है.
यूनेस्को व उसके सहयोगियों ने विश्व रेडियो दिवस पर, 13 फ़रवरी को राजधानी दिल्ली में एक रेडियो उत्सव आयोजित किया, जिसमें देश भर के विभिन्न कोनों से आए प्रसारकों ने बताया कि उनके रेडियो केन्द्र किस तरह जलवायु कार्रवाई में योगदान दे रहे हैं.
समुद्री तूफ़ानों से बचने के लिए जागरूकता
ओडिशा के प्रथम सामुदायिक रेडियो, ‘रेडियो नमस्कार’ के सह संस्थापक शाह अंसारी कहते हैं, “मैं जिस जगह से आया हूँ वो समुद्री तूफ़ान प्रभावित प्रदेश है. ओडिशा में 1999 के चक्रवात ने असंख्य लोगों को प्रभावित किया था. रेडियो भी उसी जगह पर है, समुद्र से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित. रेडियो का टावर तीन बार टूट चुका है - दाना जैसे तूफ़ानों में.”
शाह अंसारी, रेडियो के ज़रिए जानकारी फैलाकर, अपने समुदाय के लोगों को जलवायु परिवर्तन के क़हर से बचने के गुर सिखाते हैं, और आपदाओं से तबाह हुए इलाक़ों की पुनर्बहाली के लिए प्रेरित करते हैं.
उनका कहना है, “कुछ ऐसे गाँव हैं जो 1972 के चक्रवात में पूरी तरह तबाह हो गए थे. उन गाँवों का पुनुरुद्धार किया जा रहा है. कुछ बुज़ुर्गों से उसका इतिहास सुनकर कि वहाँ माहौल कैसा होता था, लोग किस तरह रहते थे – वहाँ पौधे लगाने शुरू किए गए हैं. हम चाहते हैं कि लोग फिर वहाँ जाकर बसें.”
कृषि विज्ञान केन्द्र का रेडियो
वहीं महाराष्ट्र के अहमदनगर की गायत्री महासके, केवीके प्रवरा नामक सामुदायिक रेडियो चलाती हैं. वो कहती हैं, “हम कृषि विज्ञान केन्द्र का रेडियो है तो ज़ाहिर बात है कि हम 50 फ़ीसदी कार्यक्रम किसानों के लिए चलाते हैं."
"हमारा इलाक़ा ऐसा है, जहाँ कुछ स्थानों पर बहुत बारिश होती है तो कुछ अन्य स्थानों पर बिल्कुल भी बारिश नहीं होती. किसान अपनी फ़सलों की सिंचाई के लिए ज़्यादातर वर्षा पर निर्भर रहते हैं. तो कृषि विज्ञान केन्द्र का यह उद्देश्य रहा है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा किसानों के लिए काम कर सकें."
गायत्री महासके का कहना है, "हमारे रेडियो पर किसानों की मदद के लिए समय पूर्व चेतावनी दी जाती है, फ़सलों के बचाव के तरीक़े बताए जाते हैं और अगर आपदा आ ही जाए तो राहत सहायता की पूरी जानकारी प्रसारित की जाती है. तो यह रेडियो स्टेशन, मिट्टी के दिल से नाता जोड़ने का एक प्रयास है.”
हाशिए पर रहने वाले समुदायों का सहारा
और फिर केवल जागरूकता फैलाना के लिए ही नहीं, बल्कि दूर-दराज़ के लोगों की आवाज़, मुख्यधारा तक पहुँचाने का भी एक सशक्त माध्यम है, रेडियो.
असम राज्य से पूर्वोत्तर प्रदेशों के प्रथम नागरिक समाज संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशन ‘रेडियो ब्रहमपुत्र’ के संस्थापक, भास्कर भुयान बताते हैं, “हमने जाना है कि हाशिए पर धकेले हुए जो समुदाय हैं उनका मीडिया में कोई सम्पर्क या संचार नहीं है.
"फिर चाहे वो राष्ट्रीय मीडिया हो, ज़िला स्तर का या फिर असमी भाषा का ही मीडिया हो. उस मीडिया तक इन समुदायों के मुद्दे पहुँचते ही नहीं हैं. तो हमे समझ में आया कि सामुदायिक रेडियो इसमें अहम भूमिका निभा सकता है.”
भास्कर ने 2010 से ब्रहमपुत्र नदी के किनारे यह रेडियो स्टेशन शुरू किया था. इसके लिए समुदाय के ही युवजन को प्रशिक्षण देकर अपने समुदाय की समस्याओं को प्रसारित करने का हुनर सिखाया गया.
वो कहते हैं, “अब हम अलग-अलग स्थानीय भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित करते हैं, जिनसे अधिक से अधिक समुदायों की आवाज़ बुलन्द कर सकें.”
शहरों में भी जन-जन तक पहुँच
लेकिन ऐसा नहीं है कि रेडियो की पहुँच केवल ग्रामीण इलाक़ों में ही है. शहरों में एफ़एम के रेडियो के प्रसारक भी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जागरूक हो रहे हैं और आम जनता के बीच कार्रवाई की अलख जला रहे हैं.
RED FM के रेडियो प्रसारक पूरब कहते हैं, “रेडियो किसी भी शहर का हो, जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में बहुत अहम भूमिका निभा रहा है. इस मुददे को लेकर सभी रेडियो स्टेशन भिन्न प्रकार की गतिविधियाँ चला रहे हैं और इसका असर आपको आने वाले समय में ज़रूर दिखाई देगा.”
आरजे पूरब ने रेडियो के एक अभियान का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने किस तरह, आम के मौसम के दौरान श्रोताओं को, आम खाने के बाद बेकार बची गुठली उन्हें भेजने का अभियान चलाया. इससे कई लाख गुठलियाँ उनके स्टूडियो में इकट्ठी हो गईं, जिन्हें किसानों को सौंपकर नए पेड़ों के लिए आम के बीज लगवाए गए.
स्थानीय भाषाओं के संरक्षक
रेडियो ने, स्मार्टफोन, Al और मुख्यधारा मीडिया के वर्तमान युग में, भारत की स्वदेशी भाषाओं की रक्षा करने में मदद की है. सामुदायिक रेडियो स्टेशन, समुदायों की अपनी भाषा में बोल-सुनकर, भाषाई विविधता के संरक्षण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
श्रीनगर में ‘रेडियो उरी’ के अब्दुल मजीद लोन बताते है, “2019 से भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर में सामुदायिक रेडियो स्थापित किए हैं. हम बहु-धार्मिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं. मेरे कार्यक्रम का नाम है - पुरानी डायरी, जिसमें समुदाय की यादें लिखी हैं."
"हम अलग-अलग भाषाओं में कार्यक्रम करते हैं – गोचरी, पहाड़ी, पंजाबी और कश्मीरी, ताकि श्रोताओं को लगे कि स्टूडियो में हमारे जैसा ही कोई बन्दा बैठा है.”
आकाशवाणी की पहुँच
भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव संजय जाजू ने भी इस रेडियो उत्सव में शिरकत की. उन्होंने सबसे अधिक आबादी वाले इस देश के राष्ट्रीय प्रसारक - आकाशवाणी (All India Radio) के बारे में कुछ आश्चर्यजनक तथ्य पेश किए.
उन्होंने बताया कि आकाशवाणी, देश के 90% भौगोलिक क्षेत्र को कवर करता है और देश की 98% आबादी तक पहुँचता है. अपने आदर्श – ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के अनुरूप इसमें 23 भाषाओं, 179 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं.”
उन्होंने बताया कि आकाशवाणी का नया प्रभाग चौबीसों घंटे काम करता है, घरेलू और विदेशी दोनों सेवाओं के लिए प्रतिदिन 607 से अधिक समाचार बुलेटिन, अनेक भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में प्रसारित किए जाते हैं. इसकी 46 क्षेत्रीय इकाइयाँ स्थानीय व क्षेत्रीय सामग्री तैयार करती हैं.
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नई प्रौद्योगिकियाँ, जागरूकता एवं अस्तित्व का प्रश्न
भारत स्थित यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय में प्राकृतिक विज्ञान इकाई के प्रमुख बेन्नो बोअर इस अवसर पर कहा, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वैश्वीकरण के युग में हम नई प्रौद्योगिकियों को अपना रहे हैं, लेकिन साथ ही हमें रेडियो की विशेष ताक़त को नहीं भूलना चाहिए – और वो है श्रोताओं से सीधे जुड़ने की इसकी क्षमता."
"रेडियो कहानी कहने की शाश्वत शक्ति के साथ नवीनता को जोड़कर, सूचना, प्रेरणा और सहनसक्षमता का प्रतीक बना रह सकता है. यह समुदायों को शिक्षित, जागरूक एवं एकजुट करने में अहम भूमिका निभाता है – ख़ासतौर पर दूरदराज़ के सवेदनशील क्षेत्रों में.”
सरकार द्वारा संचालित ‘आकाशवाणी’ की महानिदेशक डॉक्टर प्रज्ञा पालीवाल गौड़ कहती हैं, “रेडियो के लिए तकनीकी प्रगति से तालमेल रखना भी बहुत आवश्यक है. आकाशवाणी में रेडियो का एक ऐप तैयार किया गया है, जिसकी पहुँच विश्व भर में है. यह कॉम्पैक्ट है, आसानी से उपलब्ध है और इसके ज़रिए सभी वर्गों को सन्देश भेजना सम्भव है.”
शाह अंसारी कहते हैं कि जो लोग यह सवाल करते हैं कि "आजकल रेडियो कौन सुनते हैं?" लोगों के पास स्मार्ट फोन होते हैं, स्मार्ट टीवी होते हैं. उनके पास बिजली है, उनके पास वाहन हैं. लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास इतना धन नहीं है."
"जिनके घरों के ख़र्च मामूली पेंशन पर चलते हैं, तो ये वो लोग हैं जिनके पास रेडियो है. उनके मनोरंजन व जानकारी का साधन रेडियो होता है. तो हम अपना ध्यान इसी पर केन्द्रित कर रहे हैं कि हम अपने आसपास के, अपने समुदाय के लोगों की आवाज़ बनें.”